विषय पाठ्यक्रम:- आज का टॉपिक !
कंप्यूटर की संरचना, सीपीयू, कीबोर्ड, माउस, वीडीयू,
इनपुट डिवाइस, आउटपुट डिवाइस,
मेमोरी (रैम, रोम, कैश), ALU,
हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर कॉन्सेप्ट, हार्डवेयर,
सॉफ्टवेयर (एप्लीकेशन, सिस्टम सॉफ्टवेयर),
कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग भाषाएँ (FORTRON, ALGOL, LISP, COBOL, BASIC, PASCAL, C -LANGUAGE, C++, JAVA, PYTHON),
डाटा सूचना रि-प्रेजेंट, डाटा प्रोसेसिंग, IECT के कॉन्सेप्ट (ई-गवर्नेंस, मल्टीमीडिया मनोरंजन) |
कंप्यूटर सिस्टम के अवयव या संरचना:-
कंप्यूटर के विभिन्न घटक एवं अवयव के मध्य सम्बन्ध को "कंप्यूटर की संरचना" कहते है | कंप्यूटर की संरचना को निम्न डायग्राम द्वारा समझा जा सकता है |
सेण्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (CPU):-
CPU को "कंप्यूटर का दिमाग" कहा जाता है | कंप्यूटर से जुड़े हुए अधिकतर उपकरण किसी काम को करने के लिए CPU से संचार करते है | CPU की चिप की गति "गीगाहर्ट्ज" में मापी जाती है |
CPU की चिप की गति जितनी ज्यादा होती है, उतनी ही तेजी से कंप्यूटर भी काम करता है | आम तौर पर इन्टेल पेन्टियम की चिपों की गति 500 मेगाहर्ट्ज, 933 मेगाहर्ट्ज, 1.0 गीगाहर्ट्ज, 2.0 गीगाहर्ट्ज, 3.0 गीगाहर्ट्ज या और अधिक हो सकती है |
की-बोर्ड:-
की-बोर्ड सबसे महत्वपूर्ण "इनपुट डिवाइस" है | इससे कंप्यूटर को इनपुट (डाटा या सूचनाएं) दिया जाता है | इसमें टाईपराइटर की तरह बहुत से बटन या कुंजियाँ होती है |
इन कुंजियों को दबाकर कोई भी पाठ्य जैसे:- शब्द, संख्याएँ, और बहुत से चिन्ह टाइप किये जा सकते है | कुंजियों के ऊपर छपे चिन्हों से पहचाना जाता है कि कौन सी कुंजी किस कार्य के लिए है |
माउस:-
माउस एक "इनपुट डिवाइस" है | जो आसानी से हाथों में फिट हो जाता है | माउस की सहायता से स्क्रीन पर दिखने वाले पॉइंटर जिसे "माउस पॉइंटर" कहा जाता है, इससे कंप्यूटर की गतिविधियों को नियंत्रित किया जाता है और साथ ही स्क्रीन से चुनाव भी किया जा सकता है |
माउस के ऊपरी भाग में दो या तीन बटन होते है | माउस का निचला भाग समतल होता है जोकि माउस की चाल का पता लगाने की प्रणाली से युक्त होता है |
विजुअल डिस्प्ले यूनिट (VDU):-
जब कंप्यूटर पर कार्य किया जाता है, तो दिए गए निर्देशों एवं परिणामों का प्रदर्शन मॉनिटर पर होता है | मॉनिटर को VDU या कंप्यूटर मॉनिटर भी कहा जाता है |
देखने में यह टेलीविजन की भांति होता है, परन्तु कंप्यूटर्स के मॉनिटर विशेष प्रकार के बने होते है जिनमें एक लाइन में 80 अक्षर भी स्पष्ट प्रदर्शित होते है |
VDU में TV की भांति कैथोड किरण ट्यूब (CRT) का प्रयोग होता है | यह कंप्यूटर पर किये जाने वाले प्रत्येक कार्य की सूचना देकर कंप्यूटर और उपयोगकर्ता के मध्य सम्बन्ध स्थापित करता है |
इनपुट डिवाइसेज:-
कोई भी डाटा या निर्देश जिसे आप कंप्यूटर की मेमोरी में डालते है, उसे "इनपुट" कहते है | विभिन्न तकनीकों के इस्तेमाल से यूजर्स इनपुट डाल सकते है |
की-बोर्ड की सहायता से अक्षर टाइप कर सकते है | माउस को क्लिक या रोल करके कंप्यूटर में निर्देश डाले जा सकते है तथा माइक्रोफ़ोन के माध्यम से आप बोल सकते है |
कुछ विशेष उपकरण के माध्यम से आप कंप्यूटर में उसकी स्क्रीन पर लिख सकते है | कुछ उपकरण ऐसे है जिनकी सहायता से कंप्यूटर स्क्रीन को छूकर आप अपने डाटा या निर्देश को कंप्यूटर की मेमोरी तक पहुँचा सकते है |
डिजिटल कैमरे, वीडियो कैमरे या स्कैनर के माध्यम से कंप्यूटर में चित्र डाले जा सकते है | इनपुट डिवाइसें विभिन्न प्रकार की होती है - जैसे:- टच स्क्रीन, लाइट पेन, जॉयस्टिक, ट्रैक बॉल, माइक्रोफोन, डिजिटल कैमरा, स्कैनर, ऑप्टिकल मार्क रीडर, तथा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग आदि |
आउटपुट डिवाइसेज:-
यह एक विधुत यांत्रिक युक्ति है जो कंप्यूटर से बाइनरी डाटा लेकर उसे उपयोगकर्ता के लिए उपयुक्त डाटा में बदल देती है | कंप्यूटर यूजर की जरुरत और इस्तेमाल हो रहे हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के आधार पर विभिन्न प्रकार के आउटपुट जेनरेट करता है |
आप कंप्यूटर द्वारा तैयार किये गए आउटपुट को देख, सुन और प्रिंट कर सकते है | अपने डेस्कटॉप के मॉनिटर पर देखकर आप स्क्रीन में सूचना देख सकते है | आउटपुट डिवाइसेज भी विभिन्न प्रकार की होती है - जैसे:- मॉनिटर, वीडियो कार्ड, स्पीकर, प्रिंटर, प्लॉटर, स्क्रीन इमेज प्रोजेक्टर आदि |
कंप्यूटर मेमोरी:-
कंप्यूटर में मेमोरी की अहम् भूमिका होती है | मेमोरी में वह डाटा जिसे प्रोसेस होना है और जो प्रोसेस हो चुका है, दोनों मौजूद होते है | ये मेमोरी, डाटा, निर्देश और सूचनाएं स्टोर करने की अस्थाई जगह होती है |
प्राइमरी स्टोरेज कही जाने वाली यह मेमोरी एक या कई चिप्स से बनती है, जो मदरबोर्ड या कंप्यूटर में किसी सर्किट बोर्ड पर लगी होती है | मेमोरी कई प्रकार की होती है- जैसे:- रैम, रोम, कैश, फ़्लैश मेमोरी आदि |
1- RAM (रैंडम एक्सेस मेमोरी):-
रैम को प्राइमरी मेमोरी भी कहते है | इसमें मेमोरी चिप्स लगी होती है, जिन्हें प्रोसेसर की सहायता से पढ़ा या लिखा जा सकता है |
जब कंप्यूटर स्टार्ट किया जाता है तब कुछ ऑपरेटिंग सिस्टम फाइलें, स्टोरेज उपकरण जैसे हार्ड डिस्क से लोड होकर रैम में आ जाती है | कंप्यूटर चलने तक ये फाइलें रैम में ही रहती है तथा कुछ अन्य प्रोग्राम और डाटा भी रैम में लोड हो जाते है |
2- ROM (रीड ओनली मेमोरी):-
रोम स्टोरेज मीडिया की श्रेणी में आता है, जिसका प्रयोग कंप्यूटर और अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरणों में किया जाता है | रोम में उपस्थित डाटा में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है |
यह मेमोरी अस्थिर नहीं होती है | कंप्यूटर क्लोज हो जाने के बाद यह इसके कंटेंट खोती नहीं है | रोम की चिप में स्थायी डाटा, निर्देश और सूचनाएं होती है |
3- कैश मेमोरी:-
यह मुख्य मेमोरी से आवश्यक डाटा को लाकर रखती है, ताकि जरुरत पड़ने पर तीव्र गति से CPU को डाटा प्रदान कर सके | यह मेमोरी यूनिट तथा कंप्यूटर की गति के मध्य तालमेल स्थापित करने का कार्य करती है |
अरिथमैटिक लॉजिक यूनिट (ALU):-
इसका कार्य, मूलभूत अंकगणितीय गणनाएं करना (जोड़, घटाना, गुणा, भाग) तथा कुछ लॉजिकल कार्य (बराबर है, बराबर नहीं है, कम है या अधिक है) सम्पादित करना है | यह कण्ट्रोल यूनिट से प्राप्त निर्देशों के अनुसार कार्य करता है |
हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के कॉन्सेप्ट:-
कंप्यूटर मूल रूप से दो घटकों अर्थात् कम्पोनेन्ट्स से निर्मित होता है- हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर | किसी भी कंप्यूटर से उपयोगी कार्य करने के लिए जरूरी है कि उसके हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर परस्पर एकजुट होकर कार्य करें |
इसलिए कंप्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में विशेष सम्बन्ध होता है, दोनों एक - दुसरे के पूरक होते है | इन दोनों में से किसी एक की भी अनुपस्थिति में कंप्यूटर से कोई भी आवश्यक कार्य नहीं किया जा सकता |
हार्डवेयर:-
कंप्यूटर के वे सभी भाग जिनको देखा एवं स्पर्श किया जा सकता है, हार्डवेयर कहलाते है | कंप्यूटर के बाहर एवं अन्दर के सभी भाग, कंप्यूटर की आउटपुट तथा इनपुट डिवाइसेज आदि सभी हार्डवेयर है |
वे डिवाइसेज, जो कंप्यूटर को चलाने के लिए आवश्यक है, स्टैंडर्ड डिवाइसेज कहलाती है जैसे:- की-बोर्ड, फ्लॉपी डिस्क, हार्डडिस्क आदि | इसके अतिरिक्त वे डिवाइसेज जिनको कंप्यूटर से जोड़ा जाता है जैसे:- माउस, प्रिंटर, लाइट पेन, प्लाॅटर आदि पेरीफेरल डिवाइसेज कहलाती है |
सॉफ्टवेयर:-
कंप्यूटर तथा उससे जुड़ी डिवाइसेज से कार्य लेने के लिए सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता है | सॉफ्टवेयरों को न तो देखा जा सकता है और न ही स्पर्श किया जा सकता है |
कंप्यूटर भाषाओं में तैयार किये गए कंप्यूटर पर कार्य करने के लिए एक विधिवत् एवं व्यवस्थित निर्देशों के समूह को सॉफ्टवेयर अथवा प्रोग्राम कहा जाता है | सॉफ्टवेयर मुख्यतः दो प्रकार के होते है - एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर और सिस्टम सॉफ्टवेयर |
1- एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर:-
एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर एक अथवा एक से अधिक प्रोग्राम्स का समूह होता है जो किसी विशिष्ट प्रकार के एप्लीकेशन्स के विभिन्न ऑपरेशन को सम्पादित करने के लिए डिज़ाइन किया गया होता है जैसे:- वर्ड प्रोसेसर |
2- सिस्टम सॉफ्टवेयर:-
सिस्टम सॉफ्टवेयर एक अथवा एक से अधिक प्रोग्राम्स का समूह होता है, जो कंप्यूटर की आतंरिक क्रियाविधि को नियंत्रित करता है | यह कंप्यूटर के हार्डवेयर रिसोर्सेज का विभिन्न प्रोग्राम्स द्वारा किये जा रहे उपभोग को नियंत्रित करता है जैसे:- ऑपरेटिंग सिस्टम |
कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग भाषाएँ:-
कंप्यूटर एक मशीन है | कंप्यूटर हमारी सामान्य बोलचाल की भाषाओं में लिखे गए प्रोग्रामों को नहीं समझ सकता है | इसके लिए प्रोग्राम विशेष भाषाओं में लिखे जाते है |
इन भाषाओं को प्रोग्रामिंग भाषाएँ कहा जाता है | कंप्यूटर द्वारा कराये जाने वाले अलग-अलग प्रकार के कार्यों के लिए अलग-अलग प्रकार की प्रोग्रामिंग भाषाओं का विकास किया गया है |
कुछ उच्च-स्तरीय भाषाएँ तथा उनके प्रयोग क्षेत्र:-
1- FORTRAN (Formula Translation):-
इस भाषा का विकास सन् 1957 ई० में हुआ | यह प्रोग्रामर्स के एक समूह ने बेल प्रयोगशाला में विकसित किया | इसका प्रयोग गणित के क्षेत्र के लिए विशेषकर गणना के लिए किया गया |
2- ALGOL (Algorithimic Language):-
इस भाषा का विकास सन् 1958 ई० में हुआ | यूरोपियन तथा अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिकों ने सामूहिक रूप से इसको विकसित किया | इसका प्रयोग वैज्ञानिकों के लिए किया गया |
3- LISP (List Processing):-
इस भाषा का विकास सन् 1958 ई० में हुआ | जॉन मैकार्थी ने MIT इंस्टीट्यूट में इसका विकास किया | आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के क्षेत्र में प्रयोग के लिए बनायी गयी |
4- COBOL (Common Business Oriented Language):-
इस भाषा का विकास सन् 1959 ई० में हुआ | ग्रेस हूपर ने इस भाषा का विकास किया | इसका प्रयोग बिजिनेस के उद्देश्य से किया गया |
5- BASIC (Beginner's All Purpose Symbolic Instruction Code):-
इस भाषा का विकास सन् 1964 ई० में हुआ | जॉन जी. केमेनी और ई. कुर्ट्ज ने डर्टमाउथ कॉलेज (न्यू हैम्पशायर) में इसका विकास किया | इसका प्रयोग शिक्षण कार्य के लिए किया जाता है |
6- PASCAL:-
इस भाषा का विकास सन् 1970 ई० में हुआ था | निकोलस विर्थ ने इस भाषा का विकास किया | ये भी शिक्षण कार्य के लिए प्रयोग के लिए बनायी गयी |
7- C - Language:-
इस भाषा का विकास सन् 1972 ई० में हुआ | डेनिस रिचि ने बेल प्रयोगशाला में इसका विकास किया | सिस्टम प्रोग्रामिंग के लिए इस भाषा का विकास किया गया |
8- C++ Language:-
इस भाषा का विकास सन् 1983 ई० में हुआ | बजारने स्ट्रोस्ट्रप ने बेल प्रयोगशाला में इसका विकास किया | सिस्टम ऑब्जेक्ट प्रोग्रामिंग के लिए इसका प्रयोग किया जाता है |
9- JAVA:-
इस भाषा का विकास 1995 ई० में हुआ | जेम्स गोसलिंग ने सन माइक्रोसिस्टम में विकसित किया | इंटरनेट आधारित प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में प्रयोग के लिए इस भाषा का निर्माण किया गया |
10- PYTHON:-
इस भाषा का विकास 1980 ई० से 1991 ई० में किया गया, लेकिन सामान्यतया इसका प्रयोग 2008 में किया गया | इस भाषा का विकास गुइडो वैन रोसुम ने किया |
डाटा / सूचना का रिप्रेजेन्टेशन:-
डाटा रिप्रेजेंटेशन के मूल एवं प्रमुख घटक RAM इत्यादि ट्रांजिस्टर्स से निर्मित होते है | ये अनेक इन्ट्रीग्रेटेड सर्किट्स (ICs) से निर्मित होते है जिनमें ट्रांजिस्टर्स होते है तथा ये ट्रांजिस्टर्स दो ही दशा में कार्य करते है- ऑन या ऑफ |
सूचना डाटा का प्रोसेस्ड रूप है, डाटा को प्रोसेस्ड करके ही सूचना प्राप्त होती है, जैसे:- टाइमटेबल, कक्षा में सर्वोच्च अंक, मेरिट लिस्ट तथा प्रत्येक छात्र के अंकों का प्रतिशत | कंप्यूटर द्वारा डाटा के विश्लेषण के उपरान्त प्रस्तुत किये गये परिणाम को सूचना कहते है |
डाटा प्रोसेसिंग के कॉन्सेप्ट्स:-
डाटा को हेर-फेर (Manipulate) करने की प्रक्रिया, जिसके द्वारा डाटा को अपेक्षाकृत अधिक उपयोगी स्वरूप में प्रस्तुत किया जाता है, डाटा प्रोसेसिंग कहलाती है |
इसके अंतर्गत वे सभी उपकरण एवं प्रोसीजर्स आते है जो डाटा को प्रोसेस कर वांछित परिणाम देते है | इलेक्ट्रॉनिक डाटा प्रोसेसिंग (EDP) में विभिन्न प्रकार के इनपुट, आउटपुट एवं स्टोरेज डिवाइसेज एक कंप्यूटर से आपस में जुड़े होते है और एक साथ मिलकर डाटा को प्रोसेस करते है |
IECT के कॉन्सेप्ट:-
भारत सरकार ने इन्फोर्मेशन इलेक्ट्रॉनिक एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी (IECT) के महत्व और देश के आर्थिक विकास में इसकी भूमिका को पहचाना और इसके परिणामस्वरूप जून 1970 ई० में डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रानिक्स (DoE), एवं फरवरी 1991 ई० में इलेक्ट्रॉनिक कमीशन की स्थापना की | सरकार द्वारा IECT का प्रयोग अनेक क्षेत्रों में किया जा रहा है |
1- ई-गवर्नेंस:-
ई-गवर्नेंस अर्थात शासन नागरिकों के हितों और क़ानूनी अधिकारों और दायित्यों की अभिव्यक्ति सहित देश के राजनैतिक, आर्थिक और प्रशासनिक मामलों से सम्बंधित है |
IECT का प्रयोग केंद्र एवं राज्य स्तर पर सरकार द्वारा शासन को सहज एवं स्वचालित बनाने के लिए किया जा रहा है | इससे न केवल सरकार की कार्य करने की क्षमता बढ़ी है, वरन् सरकार के काम में पारदर्शिता भी आयी है एवं जनता से बातचीत भी बढ़ी है |
काम में पारदर्शिता आने के कारण सरकार के प्रति लोगों का विश्वास भी बढ़ा है | ई-गवर्नेंस के अंतर्गत ई-एडमिनिस्ट्रेशन, ई-सर्विसेज तथा ई-डेमोक्रेसी आते है, जिनका प्रयोग भारत सरकार के प्रशासनिक विभागों - जैसे:- जिला न्यायालय, तहसील तथा परिवहन विभाग आदि में किया जा रहा है |
2- मल्टीमीडिया और मनोरंजन:-
मल्टीमीडिया विभिन्न प्रकार के टेक्स्ट, ग्राफिक्स, साउंड, एनिमेशन और वीडियो का समूह होता है, जिसका प्रयोग विभिन्न प्रकार की सूचनाओं को आकर्षक तरीके से प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है |
मल्टीमीडिया का प्रयोग सामान्यतः विभिन्न प्रकार के उद्योग, शिक्षण एवं मनोरंजन के कार्यों के लिए किया जाता है | मल्टीमीडिया के माध्यम से हम यूजर इंटरेक्शन को बढ़ा सकते है तथा अपनी बात को यूजर तक आसानी से पहुँचा सकते है |
मल्टीमीडिया को प्रयोग में लाने के लिए विभिन्न प्रकार के सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर की आवश्यकता होती है- जैसे:- सी० रोम० ड्राइव, साउंड कार्ड, माइक्रोफोन, कैमरा तथा मल्टीमीडिया सॉफ्टवेयर |
मनोरंजन के सॉफ्टवेयर कंप्यूटर को एक इंटरटेनमेंट टूल की तरह प्रयोग करने में सहायता करते है- जैसे:- वीडियो गेम्स तथा इन्टरेक्टिव टेलीविजन |